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नवीनतम अपडेट का समय: 2017-08-13 04:58:12
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¤ ॥ दोहा ॥ ¤

॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ॥

॥ दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥


॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ॥

॥ करहु कृपा हे रवि तनय, राखऊ जन की लाज ॥

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¤¤ ॥ चौपाई ॥ ¤¤

जयति जयति शनिदेव दयाला ।

करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥


चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।

माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥


परम विशाल मनोहर भाला ।

टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥


कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।

हिय माल मुक्तन मणि दमके

कर मे गदा, त्रिशूल कुठारा ।

पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥


पिंगल, कृषो, छाया नन्दन ।

यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन ॥



सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।

भानु पुत्र पुजहिं सब कामा ॥


जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।

रंकहु राव करैं क्षण माहीं


पर्वतहु तृण होई निहारत ।

तृणहु को पर्वत करि डारत ॥


राज मिलत बन बन रामहिं दीन्हयो ।

कैकेइहूँ की मति हरि लीन्हयो ॥


बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।

मातु जानकी गई चुराई ॥


लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।

मचिगा दल में हाहाकारा ॥


रावण की गति मति बौराई ।

रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥


दियो कीट करि
'कंचन'लंका ।

बजि बजरंग बीर की डंका ॥


नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।

चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥


हार नौलखा लागयो चोरी ।

हाथ पैर डरवाय तोरी ॥


भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।

तेलिहिं घर कोल्हु चलवायो ॥


विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।

तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥


हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।

आपहुँ भरे डोम घर पानी ॥


तैसे नल पर दशा सिरानी ।

भुंजीमीन कूद गई पानी ॥


श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।

पारवती को सती कराई ॥


तनिक विलोकत ही करि रीसा ।

नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा ॥


पाण्डव पर भै दशा तुमहारी ।

बची द्रौपदी होति उघारी ॥


कौरव के भी गति मति मारयो ।

युद्ध महाभारत करि डारयो ॥


रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।

लेकर कुदि परयो पाताला ॥


शेष देवलखि विनती लाई ।

रवि को मुख ते दियो छूड़ाई ॥


वाहन प्रभु के सात सजाना ।

जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥


जम्बुक सिंह अदि नख धारी ।

सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥


गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।

हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै ॥


गर्दभ हानि करैं बहु काजा ।

सिंह सिद्धकर'राज'समाजा ॥


जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।

मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥


जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।

चोरी आदि होय डर भारी ॥


तैसहिं चारि चरण यह नामा ।

स्वर्ण, लौह, चांदी अरु तामा ॥


लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।

धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥


समता ताम्र रजत शुभकारी ।

स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥


जो यह शनि चरित्र नित गावै ।

कबहुँ न दशा निकृष्ट सतावै ॥


अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।

करैं शत्रु के नशि बल ढीला ॥


जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।

विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥


पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।

दीप दान दै बहु सुख पावत ॥


कहत राम सुंदर प्रभु दासा ।

शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥

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¤¤¤¤ ॥ दोहा ॥ ¤¤¤¤

॥ पाठ शनिश्चर देव को, कीहों भक्त तैयार ॥

॥ करत पाठ चालीस दिन, हो भव सागर पार ॥

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Posted ByRajKumar Deshmukh (Editor)On 12-08-2017, SaturDay. @Night 11:45 PM (GMT+5:30) India Time Zone.
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